‘नजराणां’ स्यूं शुरू हुयो सफर

आपणी सबस्यूं पैली फिल्म छी नजराणों। या फिल्म 1942 में बणी। या बात सब खे चे, पण ईं फिल्म ने देख बा वाळो कोने मिल्यो। ज्यादातर सुणेड़ी बात ही खे चे। ईं के बाद सही तरीका स्यूं आबा हाळी फिल्म छी बी के आदर्श की ‘बाबो सा री लाडली’। या फिल्म नजराणां के करीब 19 साल बाद 1961 मैं आई। ईं के बाद ढंग स्यूं राजस्थानी फिल्मां बणबो शुरू हुई। कईं फिल्मां कमाई का मामला मैं नाम भी करी। राजस्थानी संगीत को तो कोई सानी ही कोने। ज्यो भी गीत आया लोगां की जुबान पर चढ़ग्या। करीब 68 साल हो बा ने आया आपां ने फिल्मां बणातां, पण सौ को आंकड़ो गए साल ही पार कर पाया। सौवी फिल्म बणबा को मान मिल्यो ‘ओढ़ ली चुनरिया नैं’।
खे बा को मतलब यो छे के आपां फिल्मां तो बणा रया छां पण चाल मंदरी छे। जीतणूं छे तो आपां ने तो बेगो चालणों पड़ेलो। बाधा सब का गैला मैं आवे छे, पण ज्यो हंसतो-हंसतो कूद ज्या छे वोई रण जीत अर आवे छे। आपां ने भी आपणी माटी को, आपणी भाषा को मान बढ़ाणों छे। आवो संकळप ल्यां। आपणां सिनेमां नै, आपणी भाषा ने अतरो धनवान करां ला कै लोग आपां ने पूछबा आवे ला।

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