नहीं रहा राजस्थानी फिल्मों का यह प्रसिद्ध लेखक-गीतकार

suraj dadhichएम .डी . सोनी
राजस्थानी सिनेमा के दूसरे दौर के सबसे लोकप्रिय और सक्रिय गीतकार तथा स्क्रिप्ट राइटर सूरज दाधीच 19 अप्रेल को अलविदा कह गए। मुंबई में गुरुवार शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली।

दस जुलाई 1944 को चूरू में जन्मे सूरज दाधीच की परवरिश राजस्थानी नाटककार पं. मुरलीधर दाधीच की छत्रछाया में हुई। उन्हीं से राजस्थानी में लिखने की प्रेरणा मिली, तो अपने फूफा, जाने-माने लेखक और गीतकार पं. इंद्र से उन्हें सिनेमाई लेखन के गुर सीखने को मिले । मुंबई में सेंचुरी मिल में नौकरी के साथ राजस्थानी रंगमंच से जुड़ गए।

राजस्थानी सिनेमा में पहली बार, ‘म्हारी प्यारी चनणा’ (1983) में संवाद के साथ तीन गीत लिखे। ये तीनों गीत- अरे काल़ी पील़ी बादल़ी रे…, धीरे धीरे धीरे बोल रामूड़ा…, सावण आयो रे… खू़ब प्रचलित रहे। तब से पिछले साल आई ‘कंगना’ तक उन्होंने ‘नानीबाई को मायरो’ ‘बीरा बेगो आईजे रे’, ‘लिछमी आई आंगणै’, ‘बीनणी होवै तो इसी’, ‘वारी जाऊं बालाजी’, ‘म्हारा श्याम धणी दातार’ और ‘माटी का लाल मीणा और गुर्जर’ जैसी कई हिट, लोकप्रिय, चर्चित फिल्मों में गीत/कथा/पटकथा/संवाद का अविस्मरणीय योगदान दिया।

राजस्थानी सिनेमा में सबसे ज़्यादा फिल्मों में गीत और सबसे लंबा गीत लिखने का श्रेय उन्हें हासिल हुआ। कुछ हिंदी फिल्मों के अलावा म्यूजिक एलबम और टीवी धारावाहिकों के लिए भी गीत लिखे।

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