आजादी की कहानी, फिल्मी पोस्टरों की जुबानी

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  • संतोष कुमार निर्मल
  • पोस्टर किसी भी फिल्म का अभिन्न अंग होते हैं। पोस्टर देखकर अंदाजा लग जाता है कि फिल्म कैसी होगी। कई दर्शक तो पोस्टर देखकर ही फिल्म देखने जाते हैं। आज फिल्म प्रचार के अनेक माध्यम हो गए हैं, डिजिटल तरीका भी अपनाया जा रहा है। लेकिन पोस्टर का आकर्षण अभी भी बरकरार है। हिंदी फिल्मों के अनेक पोस्टर तो इतने दुर्लभ हैं कि वे देखने में ही नहीं आते। इनमें से अनेक तो नष्ट हो चुके हैं। भारत में फिल्मों के निर्माण को सौ वर्ष से अधिक हो चुके हैं। पहले फिल्म निर्माताओं के पास इतने साधन नहीं होतो थे कि वे पोस्टरों को संरक्षित रख सकें। यही कारण है कि अनेक पुरानी फिल्में और उनके पोस्टर नष्ट हो गए। बाद में भारतीय राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय (एनएफएआई) ने इनके संरक्षण की जिम्मेदारी ली। एनएफएआई के प्रयास से अनेक दुर्लभ फिल्मों और पोस्टरों का संरक्षण किया गया। वे आज हमारी धरोहर बन गए हैं।

    अपने इसी प्रयास को जनता तक पहुंचाने के उद्देश्य से एनएफएआई ने पिछले दिनों जवाहर कला केंद्र जयपुर में एक पोस्टर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। आजादी के 70 वर्ष नामक इस प्रदर्शनी में देशभक्ति और आजादी की लड़ाई से सम्बंधित फिल्मों के पोस्टर प्रदर्शित किए गए। इनमें सिकंदर-ए-आजम, आनंदमठ, शहीद से लेकर बॉर्डर, एलओसी, सरदार, शहीद भगत सिंह फिल्मों के पोस्टर शामिल थे। इनमें से कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिनका प्रचार सिर्फ पोस्टरों के माध्यम से ही होता था। सभी पोस्टरों के साथ उस फिल्म के निर्माण का वर्ष भी अंकित था।