सत्तर साल होग्या पण सवा सौ को आंकड़ो भी पार कोने हुयो
शिवा’जी’
आपांने सत्तर साल होग्या फिल्मां बणातां पर हाल तक सवा सौ को आंकड़ो भी पार कोने कर सक्या। बताबा ने तो घणां कारण छे, पण हकीकत स्यूं आपां मूंडो नी मोड़ सकां के आपणी फिल्म बणाबा की गति बहोत ज्यादा धीमी रही। 1942 मैं आपणी भाषा में पहली फिल्म बणी। नाम छो नजराना। जीपी कपूर की या फिल्म कोई ज्यादा कोने चाली। ई के करीब 20 साल बाद बीके आदर्श एक फिल्म बणाई। नाम छो बाबा सा री लाडली। ईं फिल्म स्यूं ही सही मायना मैं आपणां सिनेमा की शुरुआत भी हुई। ईं के बाद भी एक साल कोई फिल्म कोने बणी। 1963 अर 64 में यो उद्योग थोड़ी गति पकड़ी दोन्यूं साला में 3-3 फिल्मां रिलीज हुई। 1965 अर 1973 में एक-एक फिल्म रिलीज हुई। ईं के बाद फेरूं 7 साल तक कोई फिल्म कोने आई। 1981 में सुपातर बीनणी आई। बीनणी का पग ईं उद्योग में बड़ा शुभ पड्या। फिल्म खूब चाली। ईं फिल्म ने देखबा ने भीड़ कांई उमड़ी फिल्मां बणाबा ने निर्माता भी उमड़ग्या। ईं के बाद फिल्मां बणबा को ज्यो सिलसिलो शुरू होयो वा आज भी जारी छे। चाहे हर साल दो यातीन ही फिल्मां बण री छे पण यो उद्योग जिंदा छे। पण सही मायना में देयो जावे तो यो बस जिंदो ई छे। राजस्थानी सिनेमा की हालत ऊं मरीज की ज्यान हो री छे ज्यो सांस तो ले रयो छे पण आंख कदे -कदे ही खोले छे। फिल्मां तो बण री छे पण वा बात कोनी। आपणां स्यूं घणां बाद में शिुरू होया और प्रादेशिक सिनेमा आज काफी आछी हालत में छे। होवे भी क्यों कोने। उठे की सरकार बां ने फिल्म बणा बा ने अनुदान का रूप में इतरा पीसा दे छे कि फिल्म नहीं भी चाले तो निर्माता डबे कोने। अतरो साइरो तो खूब होया करे छे। आपणी सरकारां कदे राजस्थानी सिनेमा स्यू सौतेलो व्यवहार ही करती री। सालां बाद आपणी सरकार भी जागी अर मुयमंत्री अशोक गहलोत पांच लाख रुप्यां तक को अनुदान देबा की घोषणां करी। पण या राशि कोई बहुत ज्यादा जोश जगाबा वाळी कोने।
2011 में जागी उमीद
राजस्थानी फिल्मां के लिए बीत्यो साल काफी महत्वपूर्ण रियो। ईं साल में तीन फिल्मां रिलीज होई, ज्यां में से दो फिल्मां बढिय़ा चाली। एक तो शिरीष कुमार की लाडो मरुधरा की शान अर दूसरी निर्देशक लखविंदर सिंह की माटी का लाल मीणां गुर्जर । दोन्यूं ही फिल्मां अपणी लागत ही कोने निकाळी बल्कि निर्माता ने मुनाफो कमाकर दियो। ये दोनी फिल्मां को वचालबो ईं लिए भी महत्वपूर्ण हो जावे छे कि ये फिल्मां अस्या बखत मैं चाली छे जद कोई राजस्थानी फिल्म बणाबा की बात भी करे तो लोग उने खे चे के आत्महत्या करण दे तो वयां यी कर ले, फिल्म क्यू बणावे छे। अठे तक कि डिस्ट्रीब्यूटर भी राजस्थानी फिल्मां ने घर फूंक अर तामाशो देखबो बता अर हाथ ही कोने लगावे। सीधो ई जवाब दे छे खुद ई रिलीज कर ल्यो। अस्या समय में लाडो मरुधरा की शान जैपुर का गोलेछा सिनेमा (मल्अी प्लेक्स) में दो सप्ताह चाली अर माटी का लाल मीणा-गुर्जर अलका सिनेमा में एक सप्ताह। ये फिल्मां ईं धारणां ने भी तोड़ी कि शहर मैं राजस्थानी फिल्मां का दर्शक कोने। फिल्मां को प्रमोशन अर रिलीज सही तरीका स्यूं करे तो फिल्मां शहरां में भी चाले छे। माटी का लाल गुर्जर-मीणा का शो में तो हाउसफुल का बोर्ड लाग्या।
2012 में मचा सके छे धमाल
राजस्थानी फिल्मां के लिए यो साल खासो महत्वपूर्ण हो सके छे। ईं साल में कई बड़ी फिल्मां रिलीज होली ज्यो बॉक्स ऑफिस पर राजस्थानी सिनेमा ने चमका सके छे। राजस्थानी फिल्मा की श्रीदेवी नीलू अर अरविंद की जोड़ी हाळी फिल्म राजू बणग्यो एमएमलए स्यू काफी उम्मीदां छे। सन्नी अग्रवाल की भगत धन्ना जाट लोगां का मानस मैं बैठयोडा़ सब्जेक्ट छे। मुकेश टाक की चूंदड़ी ओढ़ासी म्हारो बीर अपणां बजट अर भव्यता की वजह स्यूं चर्चा में छे। माटी का लाल मीणा-गुर्जर की सफलता के बाद निर्देशक लखविंदर सिंह इसका पार्ट 2 ले अर आ रया छे। ईं के साथ ही वां की दो और फिल्मां भवरी व साथ कदे ना छू टे रिलीज होसी। शिरीष कुमार भी लाडो की सफलता के बाद नई फिल्म ले अर आरया छे। निर्माता-निर्देशक श्रवण जैन की फिल्म गौणा भी ईं साल में ही आवेली।
सरकार थेड़ो ध्यान दे तो बदल सके छे सूरत
आपणी सरकार अगर आपणां सिनेमा पर थोड़ो सा ओर ध्यान दे दे तो सूरत बदल सके छे ईं उद्योग की। अनुदान की राशि बढ़ा अर 25 स्यू 30 लाख कर देणी चाहिजे। र्इंं स्यू निर्माता ने घाटा की गुंजाइश कम होसी अर लोग फिल्मां बणा बा ने आगें आसी। लोकशन अगर रियायती दर पर मिल जावे तो फिल्म में आपणी विरासत भी देख बा ने मिलेली। फिल्म को नाम रजिस्टर कराबा स्यू ले अर सेंसर स्यूं पास कराबा तक निर्माता-निर्देशकां ने बारां भागणों पड़े छे। अगर ये दोन्यूं काम भी आपणां प्रदेश में ही हो बा लागज्या तो खासी सहूलियत हो जासी। अनुदान के लिए भी खासा चक्कर काटणा पड़े छे। प्रक्रिया अतरी लंबी छे के घोषणां के बाद स्यूं हाल तक तो कसी भी फिल्म ने अनुदान कोने मिल्यो। ईं प्रक्रिया ने भी सरल बणा बा की जरूरत छे। उम्मीद तो या यी छे के सरकार फिल्म निर्माता-निर्देशकां की परेशानी ने समझेली अर उचित हल निकाळे ली। उम्मीद पर तो दुनियां टिक्योड़ी छे।