राजस्थानी फिल्मों में हीरो के रूप में डेब्यू किया था जगदीप ने

राजस्थानी फिल्मों में हीरो के रूप में डेब्यू किया था जगदीप ने

राजस्थानी फिल्मों में हीरो के रूप में डेब्यू किया था जगदीप ने

राजस्थानी फिल्मों में हीरो के रूप में डेब्यू किया था जगदीप ने
एमडी सोनी
फिल्मी पर्दे पर लंबी पारी खेलने वाले जगदीप कल अलविदा कह गए। उनकी विदाई के साथ कॉमेडी का सुनहरा अध्याय सिमट गया। हम राजस्थानियों के लिए यह फक्र की बात है कि प्रादेशिक सिनेमा में जगदीप को सबसे ज्यादा राजस्थानी फिल्मों में काम करने का मौका मिला। सबसे अहम बात यह कि उनकी एंट्री हीरो के रूप में हुई। सफल फिल्मकार आदर्श ने पति-पत्नी के आपसी संबंधों पर 1964 में राजस्थान/भोजपुरी द्विभाषी धणी लुगाई बनाई। इसमें जयमाला के अपोजिट हीरो बने जगदीप ने नंदू की अपनी भूमिका पूरे मनोयोग से निभाई।

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राजस्थानी सिनेमा के दूसरे दौर में मोहनसिंह राठौड़ ने अपनी शुरुआती चार फिल्मों- ऑलटाइम हिट बाई चाली सासरिये (1988), रमकूड़ी झमकूड़ी (1989), दादोसा री लाडली(1990) और भोमली(1991) में जगदीप को लगातार चार बार भरपूर अवसर दिए। उनके रनिंग रोल की अहमियत का अंदाजा इस बात से सहज लगाया जा सकता है कि इन चार फिल्मों में उन पर 7 गाने पिक्चराइज किए गए। बाई चाली सासरिए का सुपरहिट सांग रुपयो तो लेर में माळीड़ा के चाली भी जगदीप के ऊपर ही फिल्माया गया था।

राजस्थानी फिल्मों में हीरो के रूप में डेब्यू किया था जगदीप ने

इसके अलावा, कोमल नाहटा के संयुक्त निर्माण सतवादी राजा हरिश्चंद्र(1989), रमेश मोदी की चुनड़ी(1992), भरत नाहटा की बीनणी(1992) और सुभाष शाह निर्देशित खून रो टीको(1993) में भी जगदीप ने अपनी कॉमेडी से मास ऑडियंस को जमकर गुदगुदाया।

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11 साल की उम्र में आ गए थे फिल्मों में

81 वर्षीय जगदीप ने 11 साल की छोटी-सी उम्र में फिल्म अफसाना(1951) से बतौर बाल कलाकार अपने सिनमाई कॅरियर की शुरुआत की। विमल राय की क्लासिक मूवी दो बीघा जमीन(1953) से अपनी पहचान बनाई। एवीएम बैनर की हम पंछी एक डाल के (1957) में टीनएजर की उनकी सहज भूमिका दर्शकों को बहुत पसंद आई। उसी साल एवीएम की भाभी में हीरो बने और कई फिल्मों में बतौर नायक लोकप्रिय रहे। कई हिट गीत उन पर फिल्माए गए। बाद में हिंदी और रीजनल सिनेमा में उन्होंने कॉमेडी के अलग रंग भरे, अलग छाप छोड़ी और अपना अलग मुकाम भी बनाया।

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ब्लॉकबस्टर शोले के सूरमा भोपाली के किरदार ने जगदीप को इसी नाम से फेमस कर दिया। इसी सदाबहार किरदार पर कहानी का ताना-बाना बुनकर 1988 में जगदीप ने सूरमा भोपाली बनाई। दिलचस्प बात यह कि इसमें सात मोर्चों को अकेले संभाला- निर्माण, निर्देशन, कथा-पटकथा-संवाद लेखन, संपादन, गीत लेखन, गायन के साथ सूरमा भोपाली और दिलावर खान दिल्लीवाले का डबल रोल!

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